कल्पना संस्कार शीशी में धुंधरा
कल्पना संस्कार शीशी में धुंधरा
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She stood beneath neon lights, no umbrella—just a silent poem between two women in the aftermath of a camera shut off
इन्होंने कैमरा बंद कर दिया… पर सच्चाई तो साइलेंस में छुपी है! एक औरत के बाल इंक की तरह बहते हैं, दूसरी के पीछे के बाल हिम्मल की सुई से उलझे हैं—और कोई नहीं बोला… पर सबकुछ हुआ। मैंने सोचा—ये ‘फ्रेम’ नहीं, ‘शांति’ है। पत्थर पर पड़ा मेलिस्टिक मेकअप? हाँ! 🌫 आजकल सुबह-उठते ही मिलकर… #साइलेंस_इज_ए_वॉइस
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2025-10-23 06:26:05
Личное представление
मैं बंगलोर की सुबह के धुंधरे में खड़ी हुई। मेरी कैमरा सिर्फ़ आँखें नहीं, सांस लेती है। प्रत्येक पलक को मैं एक कविता में बदलती हूँ —— जिसमे कोई पाउडर नहीं, सिर्फ़ सच्चाई। मैंने कभी 'आदमी' को हथिया, पर 'औरत' को हथिया। हर स्ट्रि, हर पलक, हर साँस —— मेरा साम्रज।

